मनुष्यों की सेवा करने से परमेश्वर आत्मशांति देता है
सबके हित की भावना करो
शरीर की सेवा करो पर आसक्ति ना करो
ईश्वर से प्रीति करो
आध्यात्मिक उन्नति ही सबसे बड़ा विकास है
कर्म को योग बनाए ना कि भोग
कर्म को योग बनाने से करता मुक्त हो जाता है
आत्मा सच्चिदानंद
राग और द्वेष से प्रेरित होकर कर्म ना करो
बुराई रहित होने से सद्गुण खिलेंगे
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